भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम आवाज़ हो / रोज़ा आउसलेण्डर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उदार बनो मेरे प्रति
अजनबी !
प्यार करती हूँ मैं तुम्हें
जिसे मैं जानती नहीं I

आवाज़ हो तुम
जो लुभाती है मुझे
मैंने सुना है तुम्हें
हरी मखमल पर सुस्ताते हुए
रम्भाती हुई साँस हो तुम
खुशी की घण्टी हो तुम
और अमर शोक हो तुम II

मूल जर्मन भाषा से प्रतिभा उपाध्याय द्वारा अनूदित