तुम आ जाओ फिर एक बार / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
हे जग के अनुपम कलाकार!
है कोटि-कोटि तुमको प्रणाम।
हे सरस काव्य के सृजनहार!
है कोटि-कोटि तुमको प्रणाम॥
तुम शक्ति-पुंज वह जादूगर,
जिसने रच कर नव नेह-गीत।
इस अखिल विश्व के नायक को,
कर दिया प्रभावित, लिया जीत।
तुम निर्भय, भावुक भक्त-हृदय,
थे निश्चय, निश्छल निर्विकार।
हे जग के अनुपम कलाकार!
है कोटि-कोटि तुमको प्रणाम॥
थे खुले हृदय के दिव्य चक्षु,
ये बाह्य नेत्र हों भले बन्द।
तन्मयता में जो निकल पड़े,
वे शब्द आप बन गये छनद।
कर की वीणा के साथ-साथ,
बज उठता था मन का सितार।
हे सरस काव्य के सृजनहार!
है कोटि-कोटि तुमको प्रणाम॥
सागर को गागर में भर कर,
तुमने पीयूष प्रदान किया।
भावुकता पनपी पोषण पा,
निष्ठुरता का अवसान किया।
नीरस जग-जीवन में तुमने
कर दिया भक्ति-रस का प्रसार।
हे जग के अनुपम कलाकार!
है कोटि-कोटि तुमको प्रणाम॥
जो भावुकता उमड़ी उर से,
अधरों पर आ साकार बनी।
भव-नद से पार उतरने को,
तरणी समान आधार बनी।
आलोकित कर मानस-प्रदेश,
कर दिया तिरोहित अन्धकार।
हे सरस काव्य के सृजनहार!
है कोटि-कोटि तुमको प्रणाम॥
हे कविवर! हिन्दी उपवन में,
लाने को फिर नूतन बहार।
कविता की कोमल कलियों से,
बिखराने को सौरभ अपार।
भारत माता की गोदी में,
तुम आ जाओ फिर एक बार।
हे जग के अनुपम कलाकार!
है कोटि-कोटि तुमको प्रणाम॥