भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम और कविता / नीलोत्पल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जब मरुंगा तो
मेरे आसपास दो चिड़ियाएं होंगी
एक मेरे शरीर से
अपनी देह सटाती
एकदम मुझमें लीन
मैं उसे उड़ जाने के लिए
नहीं कहूंगा

दूसरी जिसे मैंने नहीं पाला
जिसे मेरे अंहकार ने जन्म दिया
मैं पगलाया फिरता रहा जीवन भर
हमारी रातों का अंत नहीं था
हम तब भी साथ रहे
जब सारी ऋतुएं बीत गयीं

एक वह थी जिसे मैं चाहता था
लेकिन वह रुकी नहीं अपनी जगह
मैं खर्च करता रहा शब्द
वह जब भी मिली मुस्कुराती हुई
शब्दों के बाहर ही मिली

वह जिसे मैंने चुना नहीं
वह खड़ी थी मेरे आगे

हम दोनों के आगे कुछ नहीं था
हम दोनों के पीछे कुछ नहीं था
हम दोनों के बीच कोई धागा नहीं था

फिर भी हमने सपने देखे
जिसे मैं भूल जाना चाहता रहा
तुम्हारा नाम लेते हुए...