भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम और मैं / गुलाम नबी ‘फ़िराक़’
Kavita Kosh से
हर ओर उपज रहा है मौन
हर और पेड़ों पर बर्फ़ के फूल
दृष्टि के विस्तार तक
उज्जवल बर्फ़ीला मैदान
उस पर पूनम का चाँद
पूरे उछाह से
बर्फ़ और प्रकाश का सुख भोग रहा
चाँदी में नहाया है ‘हारी पर्वत’
नयनों को देता है ठंडक
मौन ऐसा कि हृदय की
धड़कन तक सुनी जाती
तुम भी हो, मैं भी हूँ
और हमारा ऐसा परिवेशी है
तुम्हारे मौन के पीछे भी एक पूरा संसार है
मेरे मौन के पीछे भी एक संसार है
संसार एक सूनी राह का
राजा रानी की एक कहानी का
पर यह सब कुछ तब है
जब खु़द तुम होगे
यह सब कुछ तय है
जब खुु़द मैं हूँगा।
शब्दार्थ
<references/>