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तुम और मैं / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
तुम हो, मैं हूँ रस बरसाती रात सुहानी है
रूप तुम्हारा देख चाँदनी पानी-पानी है
देख रहा है चुपके-चुपके चाँद हमें तो क्या
खुले-खिले यौवन पर लोभी नयन जमे तो क्या
रूके पवन की साँस, धुरी पर धरा थमे तो क्या
बौने चाँद हुएँ यह तो उनकी नादानी है
जब से सृष्टि रची ब्रह्मा ने, मैं हूँ, प्रिय तुम हो
हास उषा का धवल, सांध्य माथे का कुंकुम हो
पीले पात हुए न कभी जिसके तुम वह द्रुम हो
अणु-अणु-अधरों पर दोनों की प्रेम-कहानी है
जब-जब चाँद छिपा लेता मुख अपना बादल में
अलकें देख बदलते बादल चेहरे पल-पल में
फीकी हँसी उँडे़ले तारक-दल हिलते जल में
विहँसी, खिले फूल, झरनों को मिली रवानी है
तेरी मृदु मुस्कान धरा की चूनर धानी है