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तुम और मैं / सुदर्शन रत्नाकर

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मैंने तुम्हें चाहा था
पागलपन की एक हद तक
तुमने भी मुझे चाहा था
एक हद तक।
चाहा तो था
फिर क्या हुआ जो
खिंच गईं दीवारें
तुम्हारे और मेरे बीच।
प्यार किया था
वायदे किए थे
वायदे निभाए भी थे
एक जैसे सपने सजाये थे
फिर क्या हुआ जो हम बँट गए
यह मेरा है
वह तुम्हारा है
और एक दूसरे की पीठ पीछे
छुरा भी घोंपने लगे
जाने ऐसा क्यों हुआ
हमारे सपने टूट गए
एक जैसे महसूसे एहसास भी
ख़त्म हो गए और
तुम और मैं
दिशाओं में चलते रहे।