तुम कभी मन में तनिक भी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
तुम कभी मन में तनिक भी, नहीं दुःख-विषाद करना।
कभी तुमसे पृथक् हूँ मैं, भूल मन यह भ्रम न भरना॥
नित्य दोनों एक हैं, दो थे न, दो होने असभव।
प्रकृतिमें होता रहे कुछ भी, कहीं भी नाश-उद्भव॥
नित्य आत्माका मिलन है, नित्य सुखमय स्पर्श-अनुभव।
हृदय-अयन्तर सतत चलता मिलनका मधु-महोत्सव॥
नित्य नव रस, नित्य नव अनुराग, निर्मल नित्य सुख नव।
नित्य मिलन-वियोग-विरहित, नहीं पलक विछोह त्रुटि-लव॥
भावमय यह मिलन अविनाशी, अबाधित, नित्य निर्भय।
मधुरतम, अति दिव्य, अमृत, पवित्र, परमानन्द-रसमय॥
पाचभौतिक देहकी इसमें न कुछ भी है महा।
भावकी पावन समुज्ज्वल अमल छायी नित्य सा॥
प्रकृति-नियमोंका न बन्धन, देशकालातीत स्तर है।
शुद्ध सच्चित्-सुधामय यह भाव-तव परात्पर है॥
परम दुर्लभ, अति सुलभ है, मिली भाव-ज्योति शुचितम।
तनिक भी आने न देता पापमय संदेहका तम॥