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तुम काँटों पर सो जाते हो / रुचि चतुर्वेदी

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तुम तो अनजानी राहों पर,
चलते चलते खो जाते हो।
मै डगर बुहारा करती हूँ,
तुम काँटों पर सो जाते हो॥

तुम भूल भले जाओ मुझको,
मै अधरों पर बैठाये हूँ।
टकटकी लगाये पागल सी,
सर पर संसार उठाये हूँ॥
मेहन्दी भी हाथ नहीं छूटी,
तुम सीमा पर चल देते हो।
मेरे आँसू का मोल नहीं तुम,
कहाँ छिपा रख लेते हो॥
मै सुनूँ सलामी तोपों की तुम छोड़ मुझे क्यों जाते हो।
मै डगर...॥

केशों पर हाथ फिरा करके,
कहते दुश्मन ललकार रहा।
चौखट पर चूनर लाल लिये,
कहते दुश्मन हुंकार रहा॥
सीमा पर जाना है मुझको,
बाहों में भरकर कहते हो।
मै रात-रात आहें भरती,
तुम ताप वहाँ पर सहते हो॥
प्रिय रहे तिरंगे में लिपटे, तुम कहो कहाँ खो जाते हो।
मै डगर...॥