भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम किस दल में / शंख घोष / जयश्री पुरवार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर कोई दौड़कर बस का हैण्डल पकड़ने आए तो
पहले उससे सवाल करो कि किस दल के हो तुम !
भूखे मुँह तक भरा कौर ले जाने से पहले
सवाल करो — किस दल के हो तुम !

पुलिस की गोली से पत्थर पर जो गिरा
उसे उठाने से पहले जान लो उसका दल !
तुम्हारे दोनो हाथ ख़ून से सने हैं, पर कहते हो
इसके किस हाथ में रंग है किस हाथ में नहीं !

सुरंग के भीतर हाथ में मशाल लेकर इसे उसे देखो
कि किसके चेहरे पर गुदना है किसके चेहरे पर नहीं !
क्या काम, क्या बात, ये चीज़ें इतनी बड़ी नहीं
पहले बताओ, तुम किस दल से हो !

कौन मरा है भिलाई में, छत्तीसगढ़ के गाँव में दौड़ा कौन,
क़ीमती नहीं है किसका सर
किस राह में नाच होगा झन झन,
कौन सी राह हो सकती है शॉर्ट कट
अपना विचार देने से पहले जान लो,
दाग़ दो सवाल — तुम हो कौनसे दल के !

आत्मघाती फन्दे से बासी शव उतारकर
कान में करो सवाल — तुम हो कौन सा दल !
रात को सोने से पहले, प्रेम करने से पहले
करो सवाल — तुम हो कौन सा दल, कौन सा दल !

मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार