भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम कीं करो या हूं ज्यानी / मीराबाई
Kavita Kosh से
तुम कीं करो या हूं ज्यानी। तुम०॥ध्रु०॥
ब्रिंद्राजी बनके कुंजगलीनमों। गोधनकी चरैया हूं ज्यानी॥१॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे। मुरलीकी बजैया हूं ज्यानी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। दान दिन ले तब लै हुं ज्यानी॥३॥