भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम कैसे मन मारे गोरी ठाड़ी अगना / बुन्देली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तुम कैसे मन मारें गोरी ठांड़ी अंगना।।
काहे के तोरे बाजूबंदा, काहे के ककना,
काहे की तोरी मोहन माला, जप रई अंगना। तुम...
सोने के ये बाजूबंदा चांदी के ककना,
रूपे की तोरी मोहनमाला जप रईं अंगना। तुम...
कौना ले दये बाजूबंदा, कौना ने ककना,
ससुरा जी ने ले दई मोहनमाला जप रई अंगना। तुम...
कैसे टूटे बाजूबंदा, कैसे के कंगना,
कैसे टूटी मोहनमाला जप रई अंगना। तुम...
खेलत टूटे बाजूबंदा, निहुरत के ककना,
पहिनत टूटी मोहनमाला जप रई अंगना। तुम...