तुम कोई सपने की बात नहीं हो!
वैसे तो, जैसे भी छवि दिखलाओ,
आँखों में फूलो, सिंगार बन जाओ;
सपना भी तुमसे सच हो जाता है
मुझसे इसको सपना मत कहलाओ!
तुम तारों की सूनी रात नहीं हो!
ओ स्वरकार! मुझे भी स्वर दो, गाओ;
मेरी रचना को निष्फल न बनाओ!
तुम न रखोगे सुध, तो कौन रखेगा?
एक बार यह टेक रोज़ दुहराओ!
विजय-वरण मेरे! तुम मात नहीं हो!