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तुम कौन पिकी-सी रही बोल (दशम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल
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तुम कौन पिकी-सी रही बोल
यौवन माधवी-मुकुल में, निज प्राणों की पीड़ा-व्यथा घोल?
कलियों में राग-मरंद भरा
हँसता कण-कण छल-छंद भरा
मेरा मानस दुख-द्वंद्व-भरा
जगता पाटल-सा सिहर, डोल
भू-मानस-हार, गगन-शतदल
मैं चूम चरण वे किरणोज्ज्वल
भर लूँ मृदु छवि से अंतस्थल
मधुपों-सी बंदी अलक खोल
विस्मय के तट रो रहा मान
स्वर बनते जाते आत्म-दान
भय से नव-वय कलिका-सामान
स्मिति भौंहों पर जा चढ़ी लोल
तुम कौन पिकी-सी रही बोल
यौवन माधवी-मुकुल में, निज प्राणों की पीड़ा-व्यथा घोल?