Last modified on 4 जून 2008, at 18:41

तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये / हरिवंशराय बच्चन

तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!


मेरे वर्ण-वर्ण विश्रंखल,
चरण-चरण भरमाए,
गूंज-गूंज कर मिटने वाले
मैनें गीत बनाये;


कूक हो गई हूक गगन की
कोकिल के कंठो पर,


तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!




जब-जब जग ने कर फैलाए,
मैनें कोष लुटाया,
रंक हुआ मैं निज निधि खोकर
जगती ने क्या पाया!


भेंट न जिसमें मैं कुछ खोऊं,
पर तुम सब कुछ पाओ,


तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!




सुन्दर और असुन्दर जग में
मैनें क्या न सराहा,
इतनी ममतामय दुनिया में
मैं केवल अनचाहा;


देखूं अब किसकी रुकती है
आ मुझ पर अभिलाषा,

तुम रख लो, मेरा मान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!




दुख से जीवन बीता फिर भी
शेष अभी कुछ रहता,
जीवन की अंतिम घडियों में
भी तुमसे यह कहता


सुख की सांस पर होता
है अमरत्व निछावर,


तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!