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तुम गुलिस्ताँ से गए हो तो गुलिस्ताँ चुप है / मख़दूम मोहिउद्दीन

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तुम गुलिस्ताँ से गए हो तो गुलिस्ताँ चुप है
शाख़े गुल खोई हुई मुर्ग़े ख़ुशइलहा<ref>आनन्दपूर्ण चहचहाट करने वाला पक्षी</ref> चुप है ।

उफ़क-ए-दिल<ref>दिल का क्षितिज</ref> पे दिखाई नहीं देती है धनक<ref>इन्द्रधनुष</ref>
ग़मज़दा मौसमे गुल, अब्रे बहाराँ चुप है ।

आलमे तिश्नगी-ए-बादा गुसाराँ<ref>मदिरा पीने वालों की प्यास</ref> मत पूच
मयक़दा दूर है मीनाए ज़र अफ़शाँ चुप है ।

और आगे न बढ़ा क़िस्सए दिल क़िस्सए ग़म
धड़कनें चुप है सरशके सर-ए-मिज़गाँ चुप है

शहर में एक क़यामत थी क़यामत न रही
हस्र ख़ामूश हुआ फ़ित्न-ए-दौरा<ref>दौर की हवा</ref> चुप है ।

न किसी आह की आवाज़, न ज़ंजीर का शोर
आज क्या हो गया जिंदाँ में के जिंदाँ चुप है ।

शब्दार्थ
<references/>