Last modified on 12 मई 2018, at 21:12

तुम छोड़ मेरा हाथ यूँ आगे निकल गये / रंजना वर्मा

तुम छोड़ मेरा हाथ यूँ आगे निकल गये
कुछ पल ठहर सके नहीं कितना बदल गये

तुम को तो मेरे यार तबस्सुम पसन्द था
फिर इस तरह से क्यों मेरे अश्कों में ढल गये

है हाथ बढ़ाता न सहारे को कोई भी
गिर जायें तो हैं पूछते क्यूँकर फिसल गये

बच्चों की तरह काश ये जज़्बात भी होते
रोये कभी तो पा के खिलौने बहल गये

लोगों ने है दिलों को तमाशा बना लिया
देखी जो खूबसूरती झट से मचल गये

हमदर्दियाँ समेट ली हैं इतनी जिगर में
पायी ग़मों की आँच तो हम भी पिघल गये

हैं मरघटों में जल रहीं सपनों की चिताएँ
मुट्ठी में ग़म की राख ले चेहरे पे मल गये