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तुम जगते रहना / रुचि चतुर्वेदी

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अभी लालिमा लुप्त गगन की, अभी सूर्य को डसें अंधेरे,
अभी पहर पर पहरे भारी चंदा को हैं तारे घेरे।
अभी नींद ना आ जाये तुम जगते रहना॥

अभी काल का भैरव राग सुनायी देगा पहरों तुमको,
कृत्रिम चमक दिखायी देगी सागर-सागर लहरों तुमको।
सावधान रहना असत्य के दर्पण सच के बिम्ब दिखेंगे,
अभी देखना युग की पीड़ा को युग-युग क्षण स्वयं लिखेंगे।

अभी मछलियाँ स्वयं जाल तक जाने को हैं भाव उकेरे,
अभी लेखनी खो ना जाये लिखते रहना॥

अभी खेत में खड़े बिजूके बोल उठे चिडियों से खतरे,
समय कठिन है नाविक नाव लिए खुद गहरे सागर उतरे।
अभी देखना चाणक्यों को चंद्रगुप्त जीवन समझाते,
अभी देखना गिलहरी को सागर-सागर दौड़ लगाते॥

अभी कोयलें मौन हुईं हैं कौए बैठे डाल घनेरे,
अभी सत्य का दीप जलाए जपते रहना॥