भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम जो चाहो मिरी हंसी ले लो / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
तुम जो चाहो मिरी हंसी ले लो
मेरी सांसों की ताज़गी ले लो
बख़्श दो इक सुकून का लम्हा
मेरी किस्मत की हर खुशी ले लो
आहो-जारी को इक तरफ रख कर
काम तुम ज़ब्त से कभी ले लो
मेरे दामन में डाल कर सब ग़म
आप खुशियां जहान की ले लो
जिन्नते-गुलिस्ताने-दिल के लिए
उनके जल्वों से दिल कशी ले लो
ख़ुश्क दरियाओं से कहो अंजुम
मेरी आंखों से कुछ नमी ले लो