भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम जो पल में भरी धूप-सा / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
तुम जो पल में भरी धूप-सा
हो जाते थे ताप तपे से
कहना इतने दिवस कहीने
दूर रहे प्रिय हम से कैसे
कहते जिसको लवंग-लता तुम
तन्वंगी, प्रिय, चारु-शीले
आकर देखो तन पर उसके
कंटक कितने उगे कँटीले
तुम जो पल में भरी धूप-सा
हो जाते थे ताप तपे से
कहना इतने दिवस महीने
दूर रहे प्रिय हमसे कैसे