भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम जो मिले / कृष्णा वर्मा
Kavita Kosh से
1
पत्तियाँ स्पंदी
चाँदनी का कम्पन
हरता मन।
2
अमर होती
मर के घास बुने
चिड़िया नीड़।
3
साहसी घास
डाले न हथियार
जमाए जड़ें।
4
कितना मरे
हरी हो मुसकाए
जीवट घास।
5
आँधी–तूफान
ज़ब्त न कर पाएँ
दूब– मुस्कान।
6
चर रहा है
पल–पल मुझे क्यों
अंजाना डर।
7
तुम जो मिले
जगी हैं बेचैनियाँ
कहो क्या करें!
8
मचली चाह
कल्पना में पगी है
प्यार की राह।
8
भीग गई मैं
सावन की झड़ी-सी
नेह तुम्हारा।
10
बातें तुम्हारी
घोल गईं साँसों में
ललिता छंद।
11
जलाए मन
सुधियों के अंगारे
सिराए कौन।
12
अपनापन
तनिक न खुशबू
निरा छलावा।