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तुम ज्यों मेरी चाय / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
सारे दिन की
थकन मिटाते
तुम ज्यों मेरी चाय
बातों में
अक्सर परोसना
मीठा औ’ नमकीन
कितनी खुशियाँ
भर देते हैं
फ्लेश बैक के सीन
मुस्कानों का
तुम बन जाते
हो अक्सर पर्याय
कितना कुछ
हल कर देती है
अदरक जैसी बात
लौंग, इलायची
बन जाते हैं
प्रेम भरे जज्बात
जितनी भी
जो भी शिकायतें
हो तुम सबका न्याय
तुम बिन कहाँ
शाम भर पाती
इस मन में उल्लास
सच पूछो तो
मेरे होने
का तुम हो आभास
पल दो पल
जो साथ मिल रहे
वह ही मेरी आय