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तुम तक पहुँचाना चाहता हूँ यह ऋतु / रामकृष्ण पांडेय
Kavita Kosh से
हथेलियों में बंद करके
इस मौसम को
दौड़ते हुए
तुम्हारे पास जाना चाहता हूँ
"बूझो तो क्या है?"
इन धुले हुए पेड़ों का हरापन
आँखों में भर के
चाहता हूँ तुम्हारे जीवन में उड़ेल दूँ
और यह, जो सोंधी गंध उठी है
मिट्टी की, चाहता हूँ इससे तुम्हारा तन-मन
आपूरित कर दूँ
रस से सराबोर है यह जीव-जगत
तुम तक पहुँचाना चाहता हूँ यह ऋतु