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तुम तक / अंशु हर्ष

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छोटा-सा मन अक्सर सोचता था
तुम ऊपर वाले हो
बादल में रहते हो
तुम्हे पाने का कौतुहल
सदा से रहा है मन में
यूँ तो अब
एकांत में अहसास हो तुम
फिर भी मचलते हुए
बाल सुलभ मन ने
देखो आज बादलो की पगडण्डी
बनवायी है तुम तक पहुँचने की।