तुम तीनों आज कम पीना या और मँगाना / पवन करण
तुम तीनों आज कम पीना या और मँगाना
मेरे लिए, बहुत दिनों से पी नहीं मैने
आज मैं छककर पिऊँगा, लुढ़कने तक
तुम्हें क्या लगता है वे जो कहते हैं
उनके पास जो भी है सब मेरा दिया हुआ है
वे सच कहते हैं, नहीं, वे झूठ बोलते हैं
मैंने उन्हें कुछ नहीं दिया, किसी ईश्वर के पास
कुछ है ही नहीं, तो वो देगा कहां से
जिसे वे मेरा दिया कहते हैं, वो सब
तो उन्होंने तुमसे छीना है, तुम्हारी जिंदगी से
तुम्हारी ज़िंदगी उन्होंने ही चुराई है,
जब मैंने ही उन्हें दिया है तो उसमें
उनकी क्या ग़लती, अब तुम भी मांगों
बैठे रहो हाथ जोडे़, मिलना कुछ नहीं,
मैं खुद तुम्हारे आगे हाथ पसारे बैठा हूँ
घंटों वे भले ही बैठे रहते हों मेरे आगे,
मुझे दिखाई दे तब न, बजाते रहें घंटियाँ
मुझे कुछ सुनाई तो देता नहीं,
जब सांसे हीं नहीं चलतीं मेरीं, कैसी भी
बत्तियाँ जला लें, पहना लें मुझे कैसे भी
फूलों की माला क्या फ़र्क पड़ता है मुझे
अब छप्पन भोग, मैं पत्थर क्या खाऊँगा,