तुम तो पलायन के राही हो / संजय तिवारी
तुम तो यह भी नहीं जानते
न ही खुद के इतिहास को मानते
असुर कुल में जन्मा था प्रह्लाद
ईश्वर का भक्त था
उसका पिता हिरण्यकश्यपु विरक्त था
विष्णु से था नाराज
प्रह्लाद की अनसुनी कर आवाज
देवताओ ने ही उसे दिया था वरदान
उसकी निरंकुशता उसका अभिमान
विष्णुद्रोही बन गया
प्रह्लाद के मामले में तन गया
इतना बढ़ा उसका घमंड
पुत्र को ही दे दिया मृत्युदंड
अपनी बहन होलिका की गोद में
प्रह्लाद को बिठाया
चिताग्नि जलाया
होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान
विमृत हो गया
प्रह्लाद के लिए अग्निताप अमृत हो गया
होलिका हो गयी राख
प्रह्लाद की खुली आँख
भक्त के लिए विष्णु को आना पड़ा
नृसिंह बन कर असुर को निपटाना पड़ा
यही भक्ति की ताकत है और है बल
भक्त से कोई नहीं कर सकता छल
लेकिन तुम्हें क्या
तुम तो पलायन के राही हो
वही सुनते हो
जिसमे केवल तुम्हारी ही
वाहवाही हो
तुमने सच में बहुत खोया है
इसलिए मैं भी डोल रही हूँ
बुद्ध? मैं यशोधरा ही बोल रही हूँ।