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तुम देखना काल! / असंगघोष
Kavita Kosh से
एक
काल!
मेरी तुमसे
कोई होड़ नहीं है
जिन्हें थी
तुमसे होड़
वे जा चुके
अनन्त में समाने।
दो
काल!
तुम घूरते रहो
मुझे
मेरे पास है ही क्या
जिसे तुम उखाड़ लोगे।
तीन
काल!
तुम देखते रहे
हम पर ढाए गए
हर जुल्म और अत्याचार
फिर भी तुम रुके नहीं
हमारा हाल पूछने।
चार
काल!
यह तुम्हीं हो
जिसने मुझे कालान्तर से
इन आतताइयों का सामना
करने की शक्ति दी है
मुझे विद्रोह का स्वर दिया है
तुम्हीं ने काल।
पाँच
काल!
मेरी हथेली की
रेखाओं पर
अपनी जड़ें जमाए
इस कैक्टस में भी
एक दिन
फूल आएँगे उन्हें
जरूर
देखना तुम
काल
फूलों को चुन कर
जब काँटे निकाल फेंकूँगा बाहर
तुम जरूर देखना काल!