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तुम नहीं ख़्वाब हो हक़ीक़त हो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तुम नहीं ख़्वाब हो हक़ीक़त हो
मेरे महबूब हो मुहब्बत हो
रोग ये इश्क़ का अजब शै है
क्यों भला जिंदगी में राहत हो
इश्क़ शिक़वे गिले नहीं करता
प्यार में किसलिये शिकायत हो
बिन तुम्हारे रहा नहीं जाता
छूट पाये न तुम वो आदत हो
साथ छूटे न अब कभी साथी
चाहे जितनी भी अब सियासत हो
साथ देना वफ़ा की राहों पे
साँवरे तुम मिरी जरूरत हो
भूल जाऊँ तुम्हें नहीं मुमकिन
तुम हकीकत नहीं हो हसरत हो