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तुम नहीं मिलती तो भी / अक्षय उपाध्याय

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तुम नहीं मिलती तो भी
मैं
नदी तक जाता
छूता उसके हृदय को
गाता
बचपन का कोई पुराना अधूरा गीत
तुम नहीं मिलती तो भी

तुम नहीं मिलती तो भी
पहाड़ के साथ घंटों बतियाता
वृक्षों का हाथ पकड़ ऊपर की ओर
उठना सीखता
बीस और इक्कीस की उमर की
कोई न भूलने वाली घटना को
स्मरण करता
कपड़े के जूते में सिहर कर पैर रखता
तुम नहीं मिलती तो भी

तुम नहीं मिलती तो भी
जितना भी मेरे पास पिता था
उतना भर बच्चा जनता ही
रचता ज़रूर एक आदमी का संसार
कुछ अदद काँटों के बीच एक बेहद
नाज़ुक कोई फूल भी खिलाता ही

बस एक बात अलग होती
एक दरवाज़ा होता कभी नहीं बंद होने वाला
एक क़ैद अँधेरे से लड़ती चिड़िया होती
तुम नहीं होती तो भी
मैं नदी तक जाता ही ।