भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम न हो ऐसा जीवन नहीं चाहिए / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
सूना सूना सा दरपन नहीं चाहिए
तुम न हो ऐसा जीवन नहीं चाहिए
फूल कब खिल सका है धरा के बिना
ख़ुशबुएं कब उड़ी हैं हवा के बिना
बिन नयन रूप क्या सज सका है कभी
कब जुड़ी हैं हथेली दुआ के बिना
बिन ह्रदय कोई धड़कन नहीं चाहिए
सुर्ख़ियाँ जाने कब स्याहियाँ बन गईं
बोलियाँ जाने कब चुप्पियाँ बन गईं
मेरी मजबूरियों का था मुझ पर असर
कब ये आँखें मेरी बदलियाँ बन गईं
अब कोई ऐसी तड़पन नहीं चाहिए
प्रेम में दर्द है क्यों ये कहते रहें
पीर हम दूरियों की क्यों सहते रहें
स्वप्न में जो बनाये मिलन के महल
वो हक़ीक़त में क्यों रोज़ ढहते रहें
अनमना कोई बंधन नहीं चाहिए