भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम प्रेमी की अमर साधना / पीयूष शर्मा
Kavita Kosh से
तुम प्रेमी की अमर साधना, मधुर माधुरी लगती हो
संदल की खुशबू से भीगी, प्रेम पाँखुरी लगती हो
मथुरा से वृन्दावन तक है शोर यही दीवानों का,
जिस पर मोहन मुग्ध हुए तुम, वही बाँसुरी लगती हो