भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम बिखर गए क्यों / अवतार एनगिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अरे ओ !
महकती पत्तियों वाले

काले ग़ुलाब!
इतना तो बता दो
कि तनिक मुस्कराते ही
तुम
इस तरह
पत्ती-पत्ती

बिखर गये क्यों ?