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तुम बिनु छटपट प्रान करें / स्वामी सनातनदेव

राग गुणकली, तीन ताल 26.7.1974

तुम बिनु छटपट प्रान करें।
प्रानन की निधि हो तुम मोहन! कैसे धीर धरें॥
बिना तिहारे दीन-हीन अति ज्यों-त्यों गुजर करें।
पजरि-पजरि हूँ दरस आस लै नाहिन पजरि मरें॥1॥
कबलौं यों निबहैगी प्रीतम! कबलौं जियत जरें।
पथ-पेखत सब वयस सिरानी, अब कहु कहा करें॥2॥
ऐसी कहा निठुरई प्यारे! जो हम जरें झरें।
पै सपनेहुँ नहिं मिलत वस्तु वह जाकी आस करें॥3॥
तुमने ही यह जरनि दई फिर क्यों नहिं वरन करें।
प्रीतम को प्रसाद लै पुनि-पुनि रुचि-रुचि सीस धरें॥4॥
जरनि दई, अब सरन देहु-बस एती विनय करें।
सरन-सुधा जो मिलहि स्याम! तो फिर क्यों जरें मरें॥5॥