भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम बिनु जीवन भार भयो / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग तैलंग, तीन ताल 30.9.1974

तुम बिनु जीवन भार भयो।
कब लगि भटकाओगे प्रीतम! अब सब सार गयो॥
भटकन ही में गयी आयु सब, उर न नेह उनयो।
करि-करि थक्यौ न अब करिबे को कोउ उछाह रह्यौ॥1॥
जो चाह्यौ पायौ न स्याम! सो, अनचाह्यौ उदयो।
अपनी एक न चली प्रानधन! अब सब मान ढयो॥2॥
कहा करों नहिं सह्यो जात अब, अबलौं बहुत सह्यौ।
अपनो सब पुरुषारथ थाक्यौ, तुव पद-सरन गह्यौ॥3॥
‘सरनागत की पत राखत हो’ सब कोउ यही कह्यौ।
अब कोउ और न रह्यौ आसरो, जो कछु रह्यौ जह्यौ॥4॥
निश्चय ही करिहो करुना अब, उर विश्वास भयो।
तव करुना बिनु या जग में कब काको मोह गयो॥5॥