भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम बुझा नहीं सकते हो आग को / एमिली डिकिंसन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम बुझा नहीं सकते आग को
जला सकने वाली कोई चीज
बुझ सकती है खुद से ही, बिना किसी पंखे के
सबसे धीमी रात को भी.

ज्वार को लपेट कर
तुम रख नहीं सकते किसी दराज में
क्योंकि हवाओं को पता चल जाएगा उसका
और वे बता देंगी तुम्हारे देवदार फर्श को.

अनुवाद : मनोज पटेल