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तुम बेगाने थे लेकिन / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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तुम बेगाने थे लेकिन
हम दीवाने थे लेकिन

ताबीरें उल्टी निकली
ख़्वाब सुहाने थे लेकिन

चन्द बहाने थे लेकिन
वही पुराने थे लेकिन

अपनी कोई ख़ता नहीं
हर्फ़ तो आने थे लेकिन

अब वो दाद-ए-वफ़ा कहाँ
ऐसे ज़माने थे लेकिन

अपना कोई नहीं मगर
नाम गिनाने थे लेकिन

तुमसे कोई गिला नहीं
कुछ पैमाने थे लेकिन

यारों से क्या उम्मीदें
रंज उठाने थे लेकिन

ख़ुद्दारी ले डूबी हमें
लोग सियाने थे लेकिन

कौन वफ़ा का कायल है
दिल बहलाने थे लेकिन

सय्यादों से क्या शिकवा
पर फैलाने थे लेकिन

हम तो कब के मर जाते
कुछ मैख़ाने थे लेकिन