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तुम बोल सकती हो / नागराज मंजुले / टीकम शेखावत
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तुम बोल सकती हो, मनचाहे सटीक शब्द
मेरी कविता से झूठे हुए होठों से
बता सकती हो होठों पर पड़े निशानों की
कहानी कोई और
तुम नकार सकती हो
जनकत्व
मेरे भीतर के खालीपन का
पगली को नामालूम स्वयं के फूले गर्भ जैसा
जीर्ण पीपल के पत्ते पर नहीं ठहरते
उँगलियों के निशान
ख़त तुम्हारे अब भी हैं मेरे पास
परन्तु लिखते-लिखते अब
बदल ही गई होगी लिखावट तुम्हारी
इतनी क्रूर समझ आ ही गई होगी तुम्हें
कि
बलात्कार का रहस्य
नहीं करता उजागर मृत गर्भाशय
तुम पूछ सकती हो मुझसे मेरी नई पहचान
मैं मृतदेह की खुली आँखों में पर्दानशीन एक आशय
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत