भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम भी इस सूखते तालाब का चेहरा देखो / रउफ़ 'रज़ा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम भी इस सूखते तालाब का चेहरा देखो
और फिर मेरी तरह ख़्वाब में दरिया देखो

अब ये पथराई हुई आँखें लिए फिरते रहो
मैं ने कब तुम से कहा था मुझे इतना देखो

रौशनी अपनी तरफ़ आती हुई लगती है
तुम किसी रोज़ मिरे शहर का चेहरा देखो

हज़रत-ए-ख़िज्र तो इस राह में मिलने से रहे
मेरी मानो तो किसी पेड़ का साया देखो

लोग मसरूफ हैं मौसम की ख़रीदारी में
घर चले जाओ ‘रज़ा’ भाव ग़ज़ल का देखो