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तुम भी कहीं / नंदकिशोर आचार्य

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क्या सचमुच
तुम्हारे चाहने मात्र से
रची गयी यह सृष्टि ?

देखो, छुपाओ नहीं
मैं नी भी बारहा चाहा है
कुछ रचना
पर कुछ भी नहीं हो सका है
कागज पर इरछी-तिरछी लकीरों
और बाल नोच लेने के सिवा।
शब्द-जब भी हुए हैं-
मेरी विवशता ही रहे हैं,
संकल्प नहीं
और मैं निमित्त ही हो सका हूँ
केवल निमित्त।
तुम भी कहीं ...?
लेकिन तुम तो प्रभु कहलाते हो ?
(1969)