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तुम मत घबराना / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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दुख के बादल आएँगे,
छाएँगे, बरसेंगे ।
यह जीवन की रीत है बन्धु
तुम मत घबराना ।
सन्त, महात्मा, राजा, रानी
सबका दौर रहा।
दो पल बीते फिर धरती पर
कहीं न ठौर रहा ।
बिना पंख जो उड़े गगन में
मुँह की खाएँगे ।
आसमान क्या धरती पर भी
ठौर न पाएँगे ।
धूप-छाँव के जीवन में
सदा सुखी है कोई ?
कौन मरण से बच पाया है
हमको बतलाना ।
जो गर्दन पर छुरी चलाकर
माया जोड़ रहे
अपनी किस्मत के घट को वे
खुद ही फोड़ रहे ।
बिस्तर पर वे नोट बिछाकर
क्या पाएँगे चैन
कौन लूट ले या छीन ले
इसमें कटती रैन ।
केवल दो रोटी की भूख
फिर भी हैं हलकान
भूखों तक का कौर छीने
दिखलाते हैं शान