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तुम मत बोलना / अज्ञेय

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मालती की गन्ध
बोलेगी तुम अभी मत बोलना
कह गया है जो पपीहा
उस व्यथा की परत तुम मत खोलना
सुना जो वही तो यह उमगता है
नहीं कहते-कह न पाते!-वही भीतर सुलगता है
कसमसाती उमस यह-तुम भी इसी में
उमड़ता अनल-रस घोलना
उठेगी उस में लहर फिर
तुम उसी पर दोलना-
मत बोलना! मत बोलना!