Last modified on 5 फ़रवरी 2018, at 01:22

तुम माँ हो ना इसलिए / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत

बढ़ती जाती है बात पर बात बारम्बार
आपसी दुराग्रहों के बावजूद
आहत न हो जाए इसकी चिन्ता हर समय
समझ लेने से भी ज़्यादा समझदार
माँ हो ना तुम, इसलिए !

सम्भल न पाया आसमान
किसी भी प्यार का
ज़िन्दगी बीत रही है
बड़प्पन का भार ढोते हुए
अपने हक़ के इनसान बहुतेरे होने पर भी
जहाँ ज़िद की जाए, ऐंसी जगह कही भी नही
बस सूखापन भरा हुआ
भीतर-बाहर सब ओर
नज़रन्दाज़ नहीं किया जा सकता कोई भी रिश्ता
ऐसे में सवाल उठता है
क्या नाम दें अपने रिश्ते को?

ख़ून के रिश्तों का भी नहीं कोई ठिकाना
ऐसे में
इस रिश्ते को देकर नाम
क्यों किया जाए गुनाह?
तुम्हारा समझदारी से पूछा हुआ सवाल !
फिर भी मैं खोज रहा हूँ इस रिश्ते का नाम
और इस रिश्ते के आर-पार
तुम्हारा माँ होना

बाढ़ का पानी बढ़ता रहा रात भर
और पास में होता सियाह अन्धेरा
गहन दुख के समय में भी
सहारा देते हाथ तुम्हारे ही होते
बेचैनी की पहचान
केवल तुम ही कर पाती
और सिर्फ़ तुम ही समझ पाती मेरी बेचैनी
समझ जाती हो बात को जड़ से
हर दुख-दर्द को भी
माँ हो ना तुम, शायद इसीलिए

गाड़ी छूटने का समय हो गया है
और बढ़ रही तुम्हारी बेचैनी
गाड़ी छूटने के बाद भी शुरू रहती है
तुम्हारी सूचनाओं की बौछार
‘ठण्ड, हवा, खाना पीना
अपना ध्यान रखना’ वगैरह-वगैरह
थकने के बाद कभी हलके हाथों से थपथपाती हो
माँ हो ना तुम, शायद इसीलिए

तुम्हारे वर्तमान दायरे में
जगह बनाए रखना थोड़ी-सी
इन भावुक पलों के लिए
रहने देना इन्हें अभंग जीवन भर
तुम्हारे “माँ’ होने की विरासत
तुम्हारे मातृत्व के भार को सहने का
बल मिले मुझे
आखिरी साँस तक
मैं, बस, याचना ही कर सकता हूँ
तुम माँ जो हो इसलिए

मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत