भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम मान्दोरिया / ठाकुरप्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
तुम मान्दोरिया
हम नाचोनिया
मादर ना बजा
रसीला मादर न बजा
बाप खड़े
माँ खड़ी
खिड़की का पल्ला धरे
खड़ा है पिया
हम नाचोनिया
मादर ना बजा