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तुम मिले हो ख़ुदा-ख़ुदा करके / आकिब जावेद
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हम मिले दर्द को छिपा कर के
क्या मिला उनसे यूँ वफ़ा करके
याद करते है वह भुला कर के
फिर बुलाते है वह दुआ कर के
पल दो पल की इस ज़िन्दगी में तुम
जीत लो दिल यूँ मुस्कुरा कर के
हाथ को हाथ में ले कर देखो
कर के देखो यूँ फ़ैसला कर के
बाँधे धागे यूँ मन्नतों के जब
तुम मिले हो ख़ुदा-ख़ुदा कर के
लौट आई अभी-अभी मिल कर
आँख से आँख मशवरा कर के
वो ग़ज़ल के रदीफ़ है 'आकिब'
ख़ुश है हम शे' र को निभा कर के