तुम मुझसे बस शब्द और सुर ले पाये / आनंद कृष्ण
तुम मुझसे बस शब्द और सुर ले पाये-
पर बोलो ! कैसे छीनोगे मुझसे मेरे गीत-?
मुझको तो बस गीत सुनाना आता है,
होंठो पर संगीत सजाना आता है
गहरा रिश्ता है मेरा पीड़ाओं से-
फिर भी मुझको हास लुटाना आता है
तुम मुझको बस आह-कराहें दे पाये-
पर बोलो ! कैसे छीनोगे मुझसे मेरे मीत-?
मैंने गीतों में अपनी वह प्यास पढ़ी है-
बरसों से जो प्यास उम्र के साथ चढी है
तृप्त कराने कोशिश जब जब भी हुई है-
तब-तब यह तो और उग्रतर हुई-बढ़ी है
तुम मुझको बस प्यासी तृष्णा दे पाये-
पर बोलो ! कैसे छीनोगे मुझसे मेरी प्रीत -?
मैंने जीवन की बगिया में आंसू बोया है
मैंने जिसको चाहा है-बस उसको खोया है
पीड़ा से मेरी आँखें जब-जब भीगी हैं-
तब तब गले लिपट कर मुझसे, गीत भी रोया है।
तुम मुझको बस हार पुरानी दे पाये-
पर बोलो ! कैसे छीनोगे मुझसे मेरी जीत -?
मुझे पता है- इन राहों में फूल नहीं हैं,
किंतु बताओ ! कहाँ जगत में शूल नहीं हैं-?
जब शूलों से यारी करना आवश्यक हो-
तब गीतों का साथ बनाना भूल नहीं है।
तुम मुझको बस चंद सलाहें दे पाये-
पर बोलो ! कैसे छीनोगे मुझसे मेरी रीत -?