भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम मुस्कुराते रहना / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
तुम्हारी यादों को सहेज रखा है,
जिसमें तुम्हारी महक ज़्यादा थी
उन गुलाबों में
जो तुम्हारी बाहें ज़्यादा थी
उस शाल में,
जिसमें तुम्हारा नाम लिखा था
उस ख़त में,
जो तुम्हारे साथ गुनगुनाते थे
झूमते थे तुम्हारे गीतों पर
उन पत्तों में
जो रात भर हमारे साथ जागता था
उस चाँद में,
सब मुस्कुराते थे तुम्हारी यादों में
अब जाने क्यूँ ख़ामोश हैं ये
सुनो
कहीं तुम उदास तो नहीं
हाँ, शायद
इसीलिए मुरझा रहे हैं
गुलाब
शाल भी गर्माहट नहीं देती
ख़त भी चुप है
और पत्ते
वो तो बेजान हो गए हैं,
मैं जानती हूँ
तुम ऐसा नहीं चाहोगे कभी
देखो
तुम मुस्कुराते रहना
ये भी मुस्कुराते रहेंगे
और
इनके साथ मैं भी
तुम्हारी यादों में