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तुम मृदुल सुमन से कभीं हमारे प्रियतम! पाटल चिबुक छुये / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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तुम मृदुल सुमन से कभीं हमारे प्रियतम! पाटल चिबुक छुये।
क्या कहूँ अहा! राका-रजनी में प्रियतम दो-दो चन्द्र हुये।
उर्मिल उर पर क्षण-क्षण प्रियतम! मैं प्रेम-कसक थी झेल रही।
सच कहूँ, प्राणधन! मधुर त्रियामा अस्ति-नास्ति का खेल रही ।
मैं मुग्ध अचंचल दीपशिखा-सी थी जीवन-धन! मौन खड़ी।
फिर हिचक-हिचक बज उठी हमारी श्लथ पद की पैंजनी-लड़ी।
आ, गा जा ”पंकिल“ गीत, खड़ी बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥106॥