भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम में है / सुदर्शन रत्नाकर
Kavita Kosh से
तुम में है
सागर की गहराई
आसमान की ऊँचाई
पहाड़ की अटलता
धरती-सी सहनशीलता
सूर्य की उष्णता
दुर्गा की शक्ति
सतत बहते झरने की निर्मलता
फिर कहाँ से आई दुर्बलता।
और कहलाती हो अबला