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तुम मेरे गायन-स्वन / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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आसावरी ध्रुपद

तुम मेरे गायन-स्वन,
मेरी वीणा के तुम स्वरमय मादन वादन;
मेरे तुम गायन-स्वन।

अरुणोदय वेला में नील गगन का तड़ाग,
करता है जब विकीर्ण ज्योति-पù का पराग,
तम के अन्तरपट में उठती है धधक आग,
छा जाते तब मेरे नयनों में बन घन-गन।
तुम मेरे गायन-स्वन।

हिय-मन्थन करता जब अणु-अणु का संवेदन,
चपला जब करती है घनमण्डल में नर्त्तन,
लहरें जब लहरों का करतीं ग्रीवालिंगन,
देते तब मन-अम्बर में भर कम्पन गोपन।
तुम मेरे गायन-स्वन।

अन्तरिक्ष धवलित कर पूनो की चन्द्रकिरण,
करती जब भू पर कर्पूर चूर का वर्षण,
रजनी के आनन पर चन्दन का अनुलेपन,
खण्डित तब हो जाता मेरा सीमा-बन्धन।
तुम मेरे गायन-स्वन।

(22 जुलाई, 1973)