तुम मेरे सपनों को छूकर
साकार बना दो, तो जानूँ!
आँसू से अपने यौवन का
निष्ठुर शृंगार सजाता हूँ।
मैं अपनी पीर भुलाने को
जगती को गीत सुनाता हूँ।
पाषाणी भी हिल जाती है
जब मेरा स्वर लहराता है;
पर मेरे दिल का घाव कठिन
पहिचान न कोई पाता है।
दुख के इस सागर में निर्मम
मुझको न किनारा मिल पाया।
अब तलक-तुनुक तिनकों का भी
कब हाय सहारा मिल पाया!
तुम लहरों को ही नौका की
पतवार बना दो, तो जानूँ।