तुम मेरे साथ रहो / अशोक कुमार पाण्डेय
इस उदास रात
जब पत्ते अपनी खामोशियाँ समेटे देख रहे हैं बसंत को जाते हुए
और जुगनुओं सी कौंधती है उम्मीद हज़ार वाट की तेज़ रौशनी में
तुम मेरे साथ रहो
तुम मेरे साथ रहो
जैसे पत्तियों के साथ थोड़ा सा क्लोरोफिल है अब तक
जैसे जुगनुओं के साथ है थोड़ी सी चमक
जैसे रात के साथ रह ही जाते हैं थोड़े से सपने
जैसे घास में थोड़ी सी नमी रह जाती है
तुम मेरे साथ रहो और अपने आँसुओं का नमक मेरे थके कंधो में घोल दो
मैं तुम्हें कोई क़िस्सा सुनाता अगर होता मेरे पास
मैं तुम्हारा माथा भर दूँगा चुम्बनों से मेरे पास सितारे नहीं हैं
इतनी उदासियाँ लिए कैसे रहोगी अकेले?
इतनी उदासियाँ लिए कैसे रहूँगा मैं अकेला?
इतनी उदासियाँ साथ मिलें तो कौन जाने फूट पड़े कोई संगीत
तुम मेरे साथ रहो
तुम मेरे पास रहो
आज की रात जो ये गर्म हवा चलती है
आज की रात जो ये सारे बादल सूखे हैं
आज की रात सुबह जिसकी जाने कब होगी
आज की रात अकेले नहीं कटने वाली